~ Baba ~
- Those aware about both English and Hindi will readily notice that the English and Hindi versions of the discourse do not match up well. The history is that Baba graciously delivered this discourse in Nagpur in Hindi. From the original Hindi it was translated to Bengali, and from Bengali it was translated into English. The proper way is to translated directly from the original Hindi into English - and not go via Bengali. If this had been done, the English version would better reflect the original Hindi discourse. But unfortunately this was not done. This is not an isolated case - there are countless instances of such cases.
- This below Bengali poem which is printed in the English edition was not spoken by Baba when He delivered the discourse in the original Hindi.
This was added purely for purposes of Bangalisation. This is the tragic trend that has gone on for so long. Some top Dadas dirtied Baba's divine discourses by adding their own selections based on their own selfish agenda. This is the horror they did - all in Guru's name. Nature will not spare them. And it is our duty to raise this matter on the public forums. This is not something we can ignore.
Until you speak up, this nasty approach and horrible problem will never end. And you will never get a proper discourse into your hands. Those who want to know more about this should write us. Because that is not the subject of this particular email.
Here below is the original Hindi version where Baba has given the teaching in a very clear and lucid manner. You will quickly understand how the original Hindi version is far above the standard of the English version.
पशुजीवन में सेवा नहीं है | पशुजीवन में अगर है भी, वह क्या है ? न, mutual transaction—जिसको कथ्य भाषा में व्यापार, अंग्रेज़ी में business कहते हैं | दो रुपया दिए, दो रुपया का नमक लिए—Mutual exchange | इसका नाम “सेवा” नहीं है | शास्त्र में इसका नाम है—”व्यवसाय” | हिन्दी में कहते हैं—”व्यापार” | “Commercial transaction” अंग्रेज़ी में कहते हैं | तो, यह पशु जगत् में भी है | जैसे, घड़ियाल जानते हो ? मगरमच्छ—पानी में रहता है, बड़ा-बड़ा crocodile ?
क्या कहते हो यहाँ ?
[मार्गी लोग---"मगरमच्छ" |]
हाँ, मगरमच्छ | मगर | संस्कृत में मकर | तो, वह क्या करता है ? वह तो मांसाशी जीव है, carnivorous | वह खाने के बाद क्या करता है ? पानी में अब नहीं रहता है | वह पानी में जाता है केवल शिकार पकड़ने के लिए | वह पानी का जानवर नहीं है | जानवर ज़मीन का है | तो, वह उठता है, उठकर क्या करता है ? मुँह ऐसे रख देता है | हाँऽऽ [मुँह खोलकर] करके रहता है | उसके दाँत के भीतर में गोश्त घुस जाता है न ? तब, होता है क्या, कि छोटी-छोटी चिड़िया आती हैं | उसके मुँह के भीतर घुस जाती है | और जो दाँत में थोड़ा-थोड़ा जो गोश्त रह गया, वही वह चिड़िया खाती है | उस चिड़िया को खाना मिल गया | और, मकर का क्या हुआ ? दाँत साफ़ हो गया |
[हँसी]
तो, mutual exchange है | तो, उस वक्त मकर, मगरमच्छ कभी मुँह बन्द नहीं करेगा | तब तो वह चिड़िया मर जाएगी—सो नहीं करेगा | वह, mutual exchange है, व्यापार | चिड़िया कहेगी कि—”तुम्हारे दाँतों से, मैं क्या पा रही हूँ ? न, गोश्त पा रही हूँ |” और, वह देखता है कि—”तुम्हारी कृपा से मेरे दाँत साफ़ हो रहे हैं |” तो, mutual exchange | “रुपया दो नमक लो” |
[हँसी]
हाँ | तो, यह है business |
और, मनुष्य में एक अतिरिक्त चीज़ है जिसका नाम है—सेवा | सेवा क्या है ? देंगे; लेंगे नहीं कुछ | Unilateral transaction, one-sided transaction | मनुष्य जो दान करते हैं, मान लो किसी भिखमङ्गे को तुम दान करती हो | तो, exchange में कुछ लेती हो, या लेने की भावना रहती है ? नहीं | जिसको तुम दिए थे, वह भी तुम भूल जाते हो कुछ दिन के बाद | उसी रोज़ भूल जाते हो | सुबह दिए हो, तो सन्ध्या में भूल जाते हो |
तब, यह पशु में नहीं है | यह है सेवा, यह मनुष्य की विशेषता में है | किन्तु मान लो कोई आदमी आज दान दिए, एक लाख रुपया | और, रातभर नींद नहीं आई | आज इन्तज़ार में हैं कि कल सुबह अख़बार में देखेंगे कब निकल रहा है कि—सेठ चोट्टामल डाकूराम बटपरिया ने इतना रुपया दान दिया |
[हँसी]
तब तुम्हारा यह, क्या हुआ ? यह सेवा नहीं है, mutual transaction | दान दिए हो, और देखने के इन्तज़ार में बैठे हुए हो | हाँ | तो, ऐसा नहीं करोगे | दान दोगे, भूल जाओगे | दान should be what, unilateral | Unilateral माने one-sided, एकतरफ़ा |
In Him,
Arjuna Deva
IMPORTANT AND KEY NOTES FOR ALL READERS:
AN INTRODUCTION TO THE HINDI EDITION OF THIS DISCOURSE
AN INTRODUCTION TO THE HINDI EDITION OF THIS DISCOURSE
- Those aware about both English and Hindi will readily notice that the English and Hindi versions of the discourse do not match up well. The history is that Baba graciously delivered this discourse in Nagpur in Hindi. From the original Hindi it was translated to Bengali, and from Bengali it was translated into English. The proper way is to translated directly from the original Hindi into English - and not go via Bengali. If this had been done, the English version would better reflect the original Hindi discourse. But unfortunately this was not done. This is not an isolated case - there are countless instances of such cases.
- This below Bengali poem which is printed in the English edition was not spoken by Baba when He delivered the discourse in the original Hindi.
Phela kaŕi mákho tel.
[Pay money and take the goods.]
[Pay money and take the goods.]
This was added purely for purposes of Bangalisation. This is the tragic trend that has gone on for so long. Some top Dadas dirtied Baba's divine discourses by adding their own selections based on their own selfish agenda. This is the horror they did - all in Guru's name. Nature will not spare them. And it is our duty to raise this matter on the public forums. This is not something we can ignore.
WARNING:
YOU MUST SPEAK UP
YOU MUST SPEAK UP
Until you speak up, this nasty approach and horrible problem will never end. And you will never get a proper discourse into your hands. Those who want to know more about this should write us. Because that is not the subject of this particular email.
THE HINDI VERSION
Here below is the original Hindi version where Baba has given the teaching in a very clear and lucid manner. You will quickly understand how the original Hindi version is far above the standard of the English version.
[Plants, Animals and Human Beings 15 October 1979, Nagpur]
पशुजीवन में सेवा नहीं है | पशुजीवन में अगर है भी, वह क्या है ? न, mutual transaction—जिसको कथ्य भाषा में व्यापार, अंग्रेज़ी में business कहते हैं | दो रुपया दिए, दो रुपया का नमक लिए—Mutual exchange | इसका नाम “सेवा” नहीं है | शास्त्र में इसका नाम है—”व्यवसाय” | हिन्दी में कहते हैं—”व्यापार” | “Commercial transaction” अंग्रेज़ी में कहते हैं | तो, यह पशु जगत् में भी है | जैसे, घड़ियाल जानते हो ? मगरमच्छ—पानी में रहता है, बड़ा-बड़ा crocodile ?
क्या कहते हो यहाँ ?
[मार्गी लोग---"मगरमच्छ" |]
हाँ, मगरमच्छ | मगर | संस्कृत में मकर | तो, वह क्या करता है ? वह तो मांसाशी जीव है, carnivorous | वह खाने के बाद क्या करता है ? पानी में अब नहीं रहता है | वह पानी में जाता है केवल शिकार पकड़ने के लिए | वह पानी का जानवर नहीं है | जानवर ज़मीन का है | तो, वह उठता है, उठकर क्या करता है ? मुँह ऐसे रख देता है | हाँऽऽ [मुँह खोलकर] करके रहता है | उसके दाँत के भीतर में गोश्त घुस जाता है न ? तब, होता है क्या, कि छोटी-छोटी चिड़िया आती हैं | उसके मुँह के भीतर घुस जाती है | और जो दाँत में थोड़ा-थोड़ा जो गोश्त रह गया, वही वह चिड़िया खाती है | उस चिड़िया को खाना मिल गया | और, मकर का क्या हुआ ? दाँत साफ़ हो गया |
[हँसी]
तो, mutual exchange है | तो, उस वक्त मकर, मगरमच्छ कभी मुँह बन्द नहीं करेगा | तब तो वह चिड़िया मर जाएगी—सो नहीं करेगा | वह, mutual exchange है, व्यापार | चिड़िया कहेगी कि—”तुम्हारे दाँतों से, मैं क्या पा रही हूँ ? न, गोश्त पा रही हूँ |” और, वह देखता है कि—”तुम्हारी कृपा से मेरे दाँत साफ़ हो रहे हैं |” तो, mutual exchange | “रुपया दो नमक लो” |
[हँसी]
हाँ | तो, यह है business |
और, मनुष्य में एक अतिरिक्त चीज़ है जिसका नाम है—सेवा | सेवा क्या है ? देंगे; लेंगे नहीं कुछ | Unilateral transaction, one-sided transaction | मनुष्य जो दान करते हैं, मान लो किसी भिखमङ्गे को तुम दान करती हो | तो, exchange में कुछ लेती हो, या लेने की भावना रहती है ? नहीं | जिसको तुम दिए थे, वह भी तुम भूल जाते हो कुछ दिन के बाद | उसी रोज़ भूल जाते हो | सुबह दिए हो, तो सन्ध्या में भूल जाते हो |
तब, यह पशु में नहीं है | यह है सेवा, यह मनुष्य की विशेषता में है | किन्तु मान लो कोई आदमी आज दान दिए, एक लाख रुपया | और, रातभर नींद नहीं आई | आज इन्तज़ार में हैं कि कल सुबह अख़बार में देखेंगे कब निकल रहा है कि—सेठ चोट्टामल डाकूराम बटपरिया ने इतना रुपया दान दिया |
[हँसी]
तब तुम्हारा यह, क्या हुआ ? यह सेवा नहीं है, mutual transaction | दान दिए हो, और देखने के इन्तज़ार में बैठे हुए हो | हाँ | तो, ऐसा नहीं करोगे | दान दोगे, भूल जाओगे | दान should be what, unilateral | Unilateral माने one-sided, एकतरफ़ा |
[Plants, Animals and Human Beings 15 October 1979, Nagpur]
In Him,
Arjuna Deva