Baba
Ranchi group is on slow death
संस्था में प्रोपर गार्जियन शिप का अभाव?
हम
लोगो के सामने बाबा ने गार्जियन शिप का जो उदहारण पेश किया, उसको सीनियर
सन्यासी भाई बहन समझ नही पाए। जिसके कारण आज संस्था की यह दुर्दशा हो गई।
1) बाबा जितना अपने WT वर्कर्स पर एक पिता की तरह शासन करते है, उससे ज्यादा प्यार भी करते हैं।
लेकिन
आजकल सीनियर वर्कर्स अपने जूनियर वर्कर्स पर शासन तो अवश्य करते हैं,
लेकिन एक पिता की तरह नहीं बल्कि एक ब्यूरोक्रेट ऑफिसर की तरह। जिसका नतीजा
यह हुआ कि जूनियर WT वर्कर ने भी अपने सीनियर वर्कर्स को हार्दिक प्यार
देना उचित नहीं समझा।
पहले सन्यासी, संस्था को अपना लौकिक परिवार से भी ज्यादा महसूस करता था। लेकिन अब जूनियर सन्यासी को यह भी कमी खलने लगी।
2) बाबा संस्था में सिस्टम एस्टेब्लिश करना चाहते हैं। उन्होंने कभी भी अपनी पार्सनिलिटी को एस्टेबलिस नहीं किया।
लेकिन
हमारे सीनियर सन्यासी भाई बहनों ने सर्व प्रथम अपनी पर्सनिल्टी को
एस्टेब्लिश करने पर जोर दिया। और संस्था के सिस्टम को, अपनी पर्सनिल्टी
एस्टेब्लिश करने का माध्यम बना लिया। जिसके कारण सीनियर लोगो ने संस्था
में सिस्टम एस्टेब्लिस करने के नाम पर, अधिकतर सभी जूनियर संन्यासियों को
मिस यूटिलाइज कर संस्था के लोगो को कई भागों में विभाजित कर दिया।
3) सन 1990 से पहले डिग्निटी ऑफ लेबर न कि डिग्निटी ऑफ पोस्ट का सिद्धांत का पालन होता था।
लेकिन
1990 के बाद ठीक उसके विपरीत डिग्निटी ऑफ पोस्ट न कि डिग्निटी ऑफ लेबर का
सिद्धांत का पालन हुआ। जिसके कारण संस्था में ब्यूरोक्रेट सिस्टम शुरू हो
गया। और संस्था में गंदी राजनीति प्रवेश हो गई। और संस्था की सत्ता प्राप्त
करने के लिए सीनियर संन्यासियों में अनहोली एलाइंस होने लगा। अतः सीनियर
सन्यासियों में अधिकतर एक मिशनरी स्प्रिट समाप्त हो गई।
4)
बाबा मानव समाज में सद विप्रो द्वारा सदविप्र समाज एस्टेब्लिश कर PROUT को
स्थापित करना चाहते हैं। जो तत्तकालीन सरकार, कम्युनिज्म विचारधारा, एवम्
पूंजीपति लोगो को पसंद नही आया। और उस वक्त की तत्तकालीन सरकार की सरकारी
एजेंसी ने हमारे एक संन्यासी को अपना इनफॉर्मर बनाकर संस्था को ध्वंस करने
की ड्यूटी दे दी। उस इनफॉर्मर ने बहुत ही सूक्ष्म तरीके से संस्था के कुछ
भोले बाले सीनियर संन्यासियों की सरलता का फायदा उठाकर उनका मिस यूटिलाइज
कर संस्था को विभाजित कर दिया। और एक विभाजित ग्रुप का सर्वे सर्वा बन
बैठा।
सर्व
प्रथम उन्होंने कुछ चरित्रहीनों को अपनी टीम का हिस्सा बनाया। और उनकी
चरित्रहीनता की कमजोरी का फायदा उठाकर उनसे गलत कार्य करवाने लगा। धीरे
धीरे सन्यासी प्रशिक्षण केंद्रों को कमजोर करने लगा। जिसका नतीजा यह हुआ कि
2003 में जब संस्था का प्रथम विभाजन हुआ था, तब रांची विभाजित ग्रुप में
350/400 से ज्यादा सन्यासी गण थे। आज लगभग 150 के लगभग सन्यासी रह गए है।
उसमे भी लगभग 120 सन्यासी गण कभी भी रीबोल्ड कर सकते है। उसका कारण 5
(MAHAN) और 5/10 जो कि जरा ज्यादा (इनफॉर्मर) के फेनेटिक हैं। और वह भी समय
दूर नहीं जब ये 5 (MAHAN) और 5/10 फेनेतिक लोगों में से अधिकतर लोग सन्यास
जीवन त्याग कर गृहस्थ जीवन अपना लेंगे। इन्ही लोगो के कारण जब रांची
विभाजित ग्रुप के जूनियर सन्यासी सीरियस बीमार हो जाता है। और यदि इनफॉर्मर
के फेनेटिक सदस्य नहीं हैं तो उसको अपने लौकिक परिवार का सहारा लेना पड़ता
है। नहीं तो टाटानगर के भक्त मार्गी श्री धर्मेंद्र सिन्हा एवम् कुछ रांची
के मार्गी मिलकर अन्य गृही मार्गियों से आर्थिक सहयोग ले कर यथा शक्ति
अनुसार सीरियस बीमार संन्यासियों का इलाज करवा कर अपना कर्त्तव्य पूरा
करते हैं।
अतः
इस वक्त WT संन्यासियों को प्रोपर गार्जियन शिप की आवश्यकता है। यदि इस
वक्त कुछ सीनियर संन्यासी मिलकर, संस्था के जूनियर संन्यासियों को (खासकर
रांची ग्रुप) अपनी गार्जियन शिप दे सके, तो यह बहुत बड़ा कार्य होगा। जिससे
रांची विभाजित ग्रुप के सन्यासी को सीरियस बीमार होने पर अपने लौकिक
परिवार का सहारा न लेना पड़े।
आशा है इस महान कार्य के लिए अवश्य ही कुछ लोग आगे आ कर अपनी सेवा प्रस्तुत करेंगे।
आचार्य मंत्रचेतनानंद अवधूत