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Friday, November 1, 2019

Work of enemy


Baba

Work of enemy

Namaskar,

These Hindi paragraphs have been circulating in WhatsApp without any reference or citation regarding the day, date, or place of the discourse or the book or chapter name. Just it was circulated in the name of Baba. This is the work of an enemy - i.e. those who want to destroy Baba's teachings.
http://anandamarganewsbulletin.blogspot.com

This type of nasty job of circulating some clips without a proper citation in the name of Baba opens the floodgates for notorious people to ruin Baba's scripture, just as Madhuvratananda was doing the other day when he concocted a so-called holy land Jamalpur quote and cited that in the name of Baba.

In Him,
Satyamurti

Madhuvratananda’s fake quote
  • https://anandamarganewsbulletin.blogspot.com/2019/10/madhuvratananda-caught-in-forgery.html

Look what enemy did

See the work of the enemy who circulated the below any reference or citation regarding the day, date, or place of the discourse or the book or chapter name.

दीपावली क्यों मनाते हैं ?      

                      -- श्री श्री आनंदमूर्ति      

           " कीट-पतंग फसल नष्ट कर देते है ,इसलिए चतुर्दशी की रात्रि को प्रदीप जला दिए जाते थे । वे उधर दौड़ पड़ते और जल मरते । इससे फसल की रक्षा उनसे होती है । साधारण ढंग से कोई बात कहने पर मनुष्य उस पर ध्यान नहीं देता । कुछ अलंकृत करके कहने पर मनुष्य उसे मान लेता है ।" संस्कृत के क ,त ,प ,द प्राकृत में " अ " हो जाते हैं । इसलिए दीप हो जाता है - " दीअ "। दीप का अर्थ है आग की शिखा अथवा किसी एक छोटे पात्र में आग जल रही है । प्रदीप का अर्थ है किसी बड़े पात्र में शिखा जल रही है । दीपक का अर्थ है - छोटा है या बड़ा दूर से ठीक समझ में नहीं आता । लेकिन गरम लग रहा है ।जैसे दीपक राग सुनकर शरीर गर्म हो जाता है ।
         हेमन्त ऋतू के प्रारम्भ में प्रचुर कीट -पतंग जन्मते है जो फसल को क्षति पहुंचाते हैं ।अब प्रत्येक जीव का अपना -अपना संस्कार होता है , किन्तु मनुष्य में संस्कारो की प्रचुरता रहती है। एक- एक मनुष्य एक-एक प्रकार से चलता है । मनुष्यों को एक कम्पार्टमेंट में डाला नही जा सकता है । यद्यपि कई स्वाभाविक धर्म प्रत्येक मनुष्य के एक ही हैं । किन्तु कीट-पतंग या पशुओं में संस्कारों का प्राचुर्य नहीं है । घेरा अगर टूटा हो तो हर बैल बागान में घुस जायगा । उसी तरह कीट- पतंगों का एक स्वाभाविक धर्म है - आग देखते ही उसकी ओर दौड़ पड़ते हैं । यह कीट-पतंग फसल नष्ट कर देते हैं । इसलिए चतुर्दशी की रात को प्रदीप जला दिए जाते हैं ।वे उधर दौड़ पड़ते हैं और जल मरते हैं । चतुर्दशी की रात को सबसे ज्यादा अँधेरा रहता है , इसमें अगर बत्ती जलाई जाये तो सभी कीड़े बत्ती के पास आकर जल जायेंगे और फसल बच जायेगी,यही है मुख्य चीज , असल चीज ।
            कह रहा था कि सामान्य तरीके से कही गयी बात महत्व नहीं पाती । लेकिन अगर उसे किसी कहानी के माध्यम से कहा जाय तो लोग उसे मानेंगे । मान लो देहाती गांव में किसी खूंटे में कोई बैल बंधा है । बैल बैठा हुआ है । बैठे-बैठे घास खा रहा है । गांव में मान्यता है बैल की रस्सी लांघी नहीं जाती है  लांघने से पाप होता है आखिर गौवंश है न । असल में बात यह है की लांघने से बैल उठकर दौड़ेगा , इससे तुम गिर सकते हो । रस्सी पैर में अटक जायगी । उसी प्रकार से दीपावली में दीप जलाने की मान्यता के दो पक्ष है ।
                 एक पक्ष है प्राचीन काल मे तन्त्र की साधना । तन्त्र की साधना है अंधकार में आलोक का आवाहन , अंधकार में प्रकाश को खोजूंगा ।अंधकार में निमज्जित मनुष्यों के बीच प्रकाश की प्रभा प्रज्ज्वलित कर दूंगा । बाहर-भीतर दीपज्ञान ला दूंगा । इसीलिए तन्त्र में ऐसा कहा गया है । इस तिथि को प्राचीन काल के बौद्ध तन्त्र में तारा शक्ति की पूजा करते थे । वैसे तुम लोग ऐसा मत सोचना कि सभी कुछ हमारे देश की चीज है । सब कुछ वेद में है ऐसी बात नही । यह तारा तन्त्र चीन से आया था ।महर्षि वशिष्ठ लाये थे । इसी कारण तांत्रिकों के लिए अमा निशा के अंधकार का महत्व है ।बंगाल में इस तारा देवी का नाम होता है - श्यामा । ताराशक्ति और कालिकाशक्ति ने बौद्ध तन्त्र छोड़कर जब पौराणिक तन्त्र ग्रहण किया ,तब उन्होंने ताराशक्ति को भी काली कहना शुरू किया और श्यामाशक्ति को भी काली कहना शुरू किया ।तुम लोग आजकल देखोगे कि पंचांग में श्यामा पूजा लिखा हुआ है । तुम लोग कहते हो कालीपूजा । जो भी हो इन्हें एक कर दिया गया । इसलिए चूँकि तन्त्र की अमानिशा मे साधारणतः यह किया जाता था , उसकी प्राक् कालीन ब्यवस्था के अनुसार चतुर्दशी को चौदह दीपक जलाये जाते थे । इसका अर्थ होता है - मैं अब दूसरे दिन अच्छी तरह से दीप जलाउंगा । अंधकार में आलोक सम्पात करूँगा ।
            फिर हिन्दू पौराणिक कहानी है - उसे तो तुम लोग जानते हो ।एक बार श्री कृष्ण द्वारका से बाहर गए थे । उसी समय नरकासुर नाम के एक अनार्य सरदार ने द्वारका पर आक्रमण किया था । उस समय श्री कृष्ण की प्रथम महारानी सत्यभामा ने ससैन्य उसका मुकाबला किया था । युद्ध में नरकासुर की मृत्यु हुई थी । उस दिन चतुदर्शी तिथि थी । इस " नरक चतुर्दशी " तिथि को चौदह प्रदीप जलाकर उत्सव मनाया गया था ।और दूसरे दिन सत्यभामा की पूजा की गयी थी । सत्यभामा को महालक्ष्मी देवी की संज्ञा प्रदान की गयी थी।इसीलिए पश्चिम भारत के लोग उस दिन को नरक चतुर्दशी कहते हैं ।
          बंगाल के लोग कहते हैं - भूत चतुर्दशी । बंगाल में तन्त्र साधना किसकी होती थी ? उसी बौद्ध तारादेवी की ।कलिका की भी नहीं ,श्यामा की भी नहीं ।तारा देवी के तीन नाम थे - भ्रामरी तारा , तिब्बत में नाम था नील सरस्वती या वज्र तारा । और बंगाल में था उग्रतारा । तारा के विभिन्न प्रकार के भेद हैं । चीन की प्राचीन गुहा में तारादेवी के अजस्र मन्दिर हैं।
             " गर्वित दानवखर्वा कृतिखड़गखर्परा नील सरस्वती ।
               सर्वसौभाग्यप्रदायिनी कर्त्री नमस्ते तारारूप तारिणी ।।"
         इस श्लोक में नील सरस्वती की बात है । यह नील सरस्वती ही परवर्ती काल में पौराणिक धर्म के युग में आज से 1300 वर्ष पहले पौराणिक संस्कृति के पहले पौराणिक सरस्वती हो गयी ।
                " या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभरवस्त्रावृता ।
                  या विणावर्दण्ड मण्डितकरा या श्वेतपद्मासना ।।
                  या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृति भिर्दे वै सदा वन्दिता ।
                  सा मां पातु सरस्वती भगवती निः शेषजाड्यापहा ।।"
           यह सरस्वती का ध्यान मन्त्र है ।नीलसरस्वती शुभ्र हो गयी ।थोडा बदल देना पड़ेगा न ।सीधा-सीधी बौद्ध नाम रखने से लोग क्या कहेंगे ? निंदा नहीं करेंगे ! इसलिए नाम दूसरा कर दिया । उसी का प्रकारभेद है , शाकटीगढ़ में
" लगेन्चा " नाम कर दिया । जो भी हो , पश्चिम भारत के लोग - तुम लोग देखोगे , गुजरात ,राजस्थान के लोग उस समय " महालक्ष्मी " की पूजा करेंगे ।अर्थात सत्यभामा की पूजा करते हैं । इसलिए न्यू एकाउंट भी दीवाली में वर्ष का आरम्भ होगा ।चांद्र वर्ष की गिनती शुरू होगी ।
            जो भी हो तांत्रिक प्रथा ने एक प्रकार का नियम अपनाया , पौराणिक प्रथा ने एक अन्य प्रकार का नियम अपनाया । किन्तु असली उद्देश्य है "आग जलाकर कीड़े मारना " यह हुई अंदर की बात । उसे सीधे-सीधे ग्रहण करने पर उत्साह नहीं मिलेगा । फिर जो अहिंसा की बात पर थोडा पागलपन करना अच्छा समझते हैं वह कहेंगे - कीड़े मारना ठीक नहीं है । तब तो खटमल भी नहीं मारना चाहिए । रोग के जीवाणु को भी नहीं मारना चाहिए  , ये भी तो प्राणी हैं ।
             फिर इसके अतिरिक्त क्या हुआ था कि वर्धमान महावीर की मृत्यु इसी कार्तिकी में हुई थी । सभी रो रहे हैं । मरे थे मगध में - पटना जिले में । वह जगह अभी नालन्दा जिले में चली गयी है । सभी दुखित हैं ,सभी रो रहे हैं , किन्तु वे कह गए थे - अमावस्या तिथि को तुम रोना मत । उस अंधकार में तुम लोगों का दुःख और बढ़ जा सकता है । इसलिए तुम लोग उस अंधकार को भूलने के लिए खूब आलोकोत्सव मनाओगे । इसलिए लोग उस दिन दीपावली मनाते हैं , इस अंधकार को भूलने के लिए । वर्धमान महावीर के मृत्यु शोक को भूलने के लिए ।।
              " जो लोग चन्द्र कलेंडर का अनुसरण करते हैं ,उन्हें बड़ी असुविधा होती है । एक ही दिन में उनकी कई तारीखें होती हैं ।"
               दीपावली के उत्सव पर बंगाल में काली पूजा और पश्चिम भारत में महालक्ष्मी पूजा होती है । प्रदोष में लक्ष्मी पूजा रात आठ बजे होती है । अब तिथि की बात करते हैं । कुछ पण्डितों के मत से नियम है , सूर्योदय के समय जो तिथि रहती है , पूरे दिन वही तिथि रहती है । सूर्योदय के समय षष्ठी तिथि समाप्त हो गयी । आगयी सप्तमी तिथि । नक्षत्र दूसरे नक्षत्र में चला गया ।उसके चौबीस -पच्चीस घण्टे के बाद पड़ गयी अष्टमी । दूसरे दिन सूर्योदय के समय अष्टमी है । मान लो , आज सूर्योदय के पहले सप्तमी थी । इसलिए आज के पहले के सूर्योदय के समय पंचमी थी , और कल के सूर्योदय के समय सप्तमी होगी । चांद्र कलेंडर के हिसाब से आज पांच तारीख और कल सात तारीख होगी । कहो तो ब्यवहरिक जगत में कितनी असुविधा होती है । सोलर कलेंडर का अनुसरण करने का नियम बंगाल में है । एक सूर्योदय से दूसरे सूर्योदय तक एक अहोरात्र । वह चौबीस घण्टा ही होगा । उससे कम भी नहीं होगा , उससे अधिक भी नहीं होगा । दिन बड़ा हो सकता है ,रात बड़ी हो सकती है। यह तिथि का विचार क्या करेगा ? आज कौन तिथि है ,तो सूर्योदय के समय षष्ठी थी । हो सकता है षष्ठी पांच मिनट बाद ही चली गयी हो ,पड़ गयी है सप्तमी । चूंकि सूर्योदय का समय था इसलिए आज कौन तिथि हुयी ? तो आज षष्ठी तिथि हुई । फिर कई बार तिथि लम्बी हो जाती है । आज सूर्योदय के समय षष्ठी तिथि है । तुम लोग खुद दुर्गा पूजा के समय देखे हो ।लगातार दो दिनों तक सूर्योदय के समय एक ही तिथि हुयी । फिर कभी वह एक तिथि बीच में ही चली गयी । दूसरे दिन सूर्योदय के समय और एक तिथि आ जाती है ।इससे देखोगे सप्तमी के बाद ही नवमी है ।सप्तमी , अष्टमी एक दिन होती है । यही सब होता है । आनन्द मार्ग में तिथि का हिसाब करने के लिए मैंने एक विशेष नियम बना रखा है । मनुष्य के शरीर पर ,मन पर ,रक्त पर ,ब्रेन पर ,नर्व सेलों पर ,नर्व फाईवरों पर ,जैसे पागल का पागलपन बढ़ता हैैं ,  कफ-उन्माद कहा जाता है। तिथि का प्रभाव पड़ता है । बहुत बार देखोगे किसी की नाक से हमेशा श्लेष्मा निकलता रहता है । बच्चों को ऐसा हो तो माना जा सकता है । औरतों के लिए ,बड़ों के लिए कितनी लज्जास्पद बात है बताओ तो ।जो भी हो तिथि का ऐसा प्रभाव है इसीलिए मैंने ऐसी ब्यवस्था दी है कि एक अहोरात्र अर्थात सुर्योदय से सूर्योदय के बीच जो तिथि सबसे ज्यादा देर तक है , अहोरात्र पर पड़ता है । तुम तदनुसार चल सकते हो । ऐसा न होने पर कुछ देर षष्ठी , कुछ देर सप्तमी , कुछ देर अष्टमी होती है । षष्ठी है इसलिए पूरा दिन ही षष्ठी कह दिया , यह ठीक नहीं हुआ क्योकि दिन का अधिक भाग तो सप्तमी है । मनुष्य के मन- शरीर पर तो सप्तमी का ही असर ज्यादा पड़ता है । इसलिए सप्तमी ही होगी । यही सिस्टम अच्छा है । विगत कल सूर्योदय के समय अमावस्या नहीं थी , आज सूर्योदय के समय अमावस्या है । कल सन्ध्या के बाद अमावस्या थी । आज सन्ध्या सात बजे तक खत्म हो रही है । अमावस्या अहोरात्र के विचार से अधिक देर तक आज है । आनंदमार्ग के हिसाब से इसलिए आज अमावस्या मानेंगे । कल सूर्योदय के समय चतुर्दशी
 थी । बंगला नियम से कल चतुर्दशी होंना तो उचित था ।इसलिए कल तो सूर्योदय के समय चतुर्दशी ही थी । किन्तु बंगला नियम से तो कल ही अमावस्या हो गयी , कालीपूजा कल हुई है । आज दीपावली भी तब ठीक
ही है ।
            तन्त्र का नियम है , जो देवियाँ तांत्रिक दैवियाँ हैं , साधकों का सब रस अर्थात वीभत्स रस ,हिंसा आदि जो कुछ भी है सबको एकत्र कर देता हा है । " बलि दे रहा हूँ ", ' जय माँ काली ' कहकर निर्दोष बकरे को काट दिया । रक्त का स्रोत बह गया । हिंसा का अभिप्रकाश किया जाता है । यह अच्छा है या बुरा ,अन्य लोग विचार करेंगे । तीन प्रकार की तारा देवियाँ है - तारा , कालिका और श्यामा ।ये वैसी ही हैं । अतः इस प्रकार की जो यह पूजा है - अतिभीषण है ।
          साधकों को साधारण मनुष्यं की तरह रहने से उनका काम नहीं चलेगा । उनका समय है रात बारह बजे से रात तीन बजे तक , रात्रि का तीसरा प्रहर । छः बजे से नौ बजे तक प्रथम प्रहर , नौ से बारह बजे तक द्वितीय प्रहर और बारह से तीन बजे तक तृतीय प्रहर , तीन से छः बजे तक चतुर्थ प्रहर होता है , जो विश्व की शुभकामना रखते है ,जो लोग विद्यातन्त्र के साधक हैं उनके लिए और जो लोग विश्व की अशुभ कामना करते है अर्थात जी किसी भी तरीके से अपनी शक्ति चाहते हैं ,उनके लिए भी तृतीय प्रहर का समय प्रकृष्ट है ।और जो समाज-विरोधी हैं उनके लिए भी यही तृतीय प्रहर चोरों के लिए भी उपयुक्त
है ।
            " पहले प्रहर में सब कोई जागे दूसरे प्रहर में जागे भोगी " तीसरे प्रहर योगी प्रातः उठ जाता है । कोई कोई कहते हैं ,नहीं - नही तृतीय प्रहर चोटट्टा जागे ,चौथे में जागे योगी ।।"
       कुछ लोग कहते हैं - चौथे में जगे रोगी । रोगी को नींद नहीं आती । जो भी हो , यह जो प्रहर साधनाएं हैं इनके लिए सबसे अच्छा समय तीसरा प्रहर है ।( किन्तु तीसरे प्रहर का आरम्भ होगा ,ठीक बारह बजने वाले मुहूर्त से ही और मुहूर्त होता है उतना समय जो पलक झपकने में लगता है ।)
             आज अमावस्या है और बंगाल में कालीपूजा है ।अमावस्या आज ही मानी जाती है लेकिन यह काली पूजा है ,इसलिए कल करनी पड़ी थी ।आज उत्तर भारत ,दक्षिण भारत जहां का असली यह उत्सव है , वहां कालीपूजा है ,महालक्ष्मी पूजा है । तांत्रिक देवी काली का यहां प्रश्न नहीं है । इसलिए वे आज ही जागरण करेंगे । तुम देखोगे कि मारवाड़ियों के यहां आज ही दीपावली है । लेकिन बंगालियों के यहां दीपावली पार हो गयी है । तूम लोगों को अच्छा लगा न । इति ।

                          ।। सदगुरु श्री श्री आनन्दमूर्ति जी।।

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